कार्य व्यवहार में स्वयं पर विश्वास बनाम दूसरो की राय
कार्य व्यवहार में स्वयं पर विश्वास बनाम दूसरो की राय
स्वयं पर विश्वास करने से पहले हमे यह देखना होगा कि हमारी बुद्धि इतनी सक्षम है या नहीं कि हम अपने कार्य को निष्पक्ष अर्थात साक्षी होकर देख सकते है ,या नहीं,कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अपने गलत कार्य को भी सही साबित करते हुए स्वयं पर विश्वास कर रहे है ,इसके लिए हम दूसरो की राय या विचारों को पूरा सम्मान दे उनकी बात ध्यान से सुनकर और उसके फायदे और नुकसान सोच कर यह निर्णय लेना चाहिए कि यह कार्य सही या गलत उसमे केवल स्वयं पर विश्वास न करे,यह जिद्द का अभिमान का स्वाभाव भी हो सकता है ,इसे अपनी हार न समझे वैसे भी कहते है मैजोरिटी विन्स ,यह विचार करना चाहिए कि ज्यादातर लोग गलत नहीं हो सकते केवल कुछ ही मामलो में ऐसा हो सकता है कि उनका स्वार्थ हो फिर अपने निर्णय युक्ति युक्त लेना होता है ताकि कार्य भी ठीक हो जाये और हमे कोई विरोध भी न करे। कार्य करने का निर्णय लेने के बाद अधिक न सोचे कार्य पर ध्यान केंद्रित करे जिससे हमारी कार्यक्षमता पर असर न पड़े,अब हमे स्वयं पर विश्वास करना है कि हम सही कर रहे है। कन्फुज़ न हो अपने आपको शक्तिशाली समझ रिजल्ट का संकल्प करे कि सफलता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। दूसरो की हर बात सुनना और बिलकुल न सुनना दोनों ही नुक्सान कारक हो सकते है। किसी बात सुनते उसमे खुद का फ़ायदा समझना जरूरी है।
Written by
BK DAYA
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